ईश्वर की कलम
विस्फोट...खून की नदियाँ।
तलवार...बंदूक। मिट्टी और आकाश को हड़पनेवालों के बीच दम घुटता है।
“इनके बीच कैसे रहूँ?” - उसने ईश्वर से पूछा।
ईश्वर ने कुछ नहीं कहा।
किंतु उसकी ओर लगे ईश्वर के हाथ में एक कलम थी।
मूल : पी.के.पारक्कटव
अनुवाद : रतीश निराला